होती मन की दूर निराशा
“द्व मुक्तक “(चौपाई छंद )
(१)
बोल चाल की भाषा ऐसी,
मीठी हो शक्कर के जैसी।
कानों में घुल जाये पल में,
घुले चाय में चीनी जैसी।।
(२)
मृदु हो बोल चाल की भाषा ,
बढ़ जाती है मन में आशा।
प्यार छलक आता है लब पर,
होती मन की दूर निराशा।