है बुद्ध तूं, प्रबुद्ध तूं।
है बुद्ध तूं, प्रबुद्ध तूं।
*******************
हे मानव क्यों निराश तूं
मौन बीना; संवाद तूं।
नीज क्षमता का तूं भान कर,
कर कुण्ठा का संघार तूं।
है बुद्ध तूं प्रबुद्ध तूं।।
नहीं बाधा कोई इतनी बड़ी
जो तेरे पग को रोक सके,
नहीं विपदा कोई कालजयी
जो क्षमता क्षण में तोड़ सके,
आलस को तूं त्याग कर
कर हिम्मत का संचार तूं।
है बुद्ध तूं प्रबुद्ध तूं।।
तूं राम रूप में पुरुषोत्तम
जो कृष्ण बने तो कालजयी,
तूं सर्व सामर्थी शंकर है
है विघ्न तो, तूं प्रलयंकर है,
हर विघ्न का तूं संघारक है
कर खुद पे ही विश्वास तूं ।
है बुद्ध तूं प्रबुद्ध तूं।।
तूं वस्त्र शस्त्र का निर्माता
तू वेद विशारद विख्याता,
है स्त्रोत ज्ञान के धारा की
तूं कृत्य महान, विधाता की,
तूं ज्ञान का अपने सृजन कर
कर पथ अपना प्रसस्त तूं।
है बुद्ध तूं, प्रबुद्ध तूं।।
.©®…………
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”