है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो…
है केवल काश्मीर नहीं,
सिर मुकुट है भारत का वो…
कोई टुकड़ा पुश्तेनी नहीं,
अविभाज्य अंग है भारत का वो…
पत्थर ईंटो से न पाटों उसको,
धरती का स्वर्ग कहलाता है वो…
वैमनस्य ईर्ष्या में न उसे धकेलो,
भारत से जुड़ प्यार जताता है वो…
अंग पाक का न कहो उसे तुम,
निष्पक्ष भारत में विलय चाहता था वो…
राजनीतिक स्वार्थ उससे न तुम साधो,
सफ़ेद सत्य की चादर ओढ़े रहता है वो…
भटकाये है युवा वहा के,
अलगाववादियों की गिरफ़्त में है वो…
औरो के लड़कों को हथियार बनाके,
खुद की संतानें अमरीका यूरोप भेजते है वो…
काश्मीर की ही पैदाइश होकर,
उसीको घायल करते है वो…
दो झंडे की कोई चाहत न उसको,
हर हृदय तिरंगा चाहता है वो…
है केवल काश्मीर नहीं,
सिर मुकुट है भारत का वो…
✍कुछ पंक्तियाँ मेरी कलम से : अरविन्द दाँगी “विकल”