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15 Mar 2018 · 1 min read

हे शिक्षे !

हे शिक्षे,
तू भ्रष्ट हुई
बनकर बनिकों की मुँहबोली
वैभव की अभिप्राय हुई
रुपयों की थैली ।

सर्वसुलभ थी समाधान थी
दीन-हीन वंचित-विशेष
सबमें समान थी
अब महलों की मेहमान हुई
और नीलामी की बोली।

अक्षर-अक्षर गुनकर तेरे
भिक्षुक भी धनवान हुऐ
पिछवाड़े पैबन्द लगे भी
सभ्य हुऐ गुणवान हुऐ
…खंड हुऐ सब मूल्य
तू बस हंसी ठिठोली ।

हे शिक्षे…..

‘भुवनेश’

Language: Hindi
271 Views
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