हे भोले दानी
विधा—– मन मनोरम छंद
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हे भोले दानी
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उमा पति हे त्रिपूरारी,
करो पार बेड़ा मेरा।
कैलाशी हे असुरारी,
मुझे सहारा है तेरा।
करो कृपा भोले दानी,
बनकर भक्त रहें तेरा।
नाथ हरो दुविधा मन की,
सच का साथ रहे मेरा।
सोमवार का व्रत पहला,
भीड़ लगी है भक्तों की।
कावड़ लेकर जल भरने,
झूंड चली है संतो की।
बम भोले बोल रही है,
कावड़ियों की यह टोली।
बाबा इच्छा पूरी हो,
इनकी भर जाये झोली।
नमामि भोले भंडारी,
नमन करूँ हे अविनाशी।
विश्वनाथ अवघड़ दानी,
नमन तुझे काशी वासी।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
सावन के प्रथम सोमवार संग संपूर्ण श्रावण मास की अनंतशः हार्दिक शुभकामनाएं।
अविनाशी काशी वासी
नमन मेरा स्वीकार करो
भक्तों की दुख दुविधा का
पल में तुम संहार करों।
सबका बेड़ा पार करो।।