हूं मै भी मानव,एक सामाजिक प्राणी !
चलो आज सुनाऊं,अपनी खुद की कहानी।
हूं मै भी मानव,एक सामाजिक प्राणी।
मेरा हर काम मुझे अच्छा लगे।
दूसरों की कमियों के पीछे मन भगे।
अनजाने हो या चाहे हो सगे।
कहीं न कहीं,कैसे न कैसे,बात निकालूं।
मेरे कथनों वचनों में भाव तो यही जगे।
चर्चा चलती रहती मेरी जबानी।।
हूं मानव मै भी,एक सामाजिक प्राणी।।
सचेतक कितना उनका,रखता ब्योरा सबका।
समय समय पर लेता रहता नाम सबका।
करता रहता बखान,पी पी कर पानी।।
हूं मै भी मानव,एक सामाजिक प्राणी।।
राजेश व्यास अनुनय