हूं बेफिक्र सर पे मां का आंचल है
नीले आसमान में तैरता बादल है
हूं बेफिक्र सर पे मां का आंचल है
मुंह फुलाए चौखट पर बैठ जाते है
गुस्से में मासुमियत से ऐंठ जाते हैं
मां पीछे-पीछे खाना लेकर आती है
बाबू -बाबू कहकर पुचकारती है
लापरवाही से खो जाता पायल है
हूं बेफिक्र सर पे मां का आंचल है
ससुराल का दुःख सुना देती हूं
सुलगते मन को ठंडक पहुंचा लेती हूं
तबियत कैसे निहाल हो जाता है
मन हल्का कमाल हो जाता है
सारी कायनात मां का कायल है
हूं बेफिक्र सर पे मां का आंचल है
नीले आसमान में तैरता बादल है
हूं बेफिक्र सर पे मां का आंचल है।
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जिला- कुशीनगर