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16 Oct 2018 · 1 min read

हुश्न

हुश्न आतिश है,
निगाहें उनकी खंज़र है।
उनकी एक अंगड़ाई
कयामत सी बरपाई
कितने दिल टूट गए
आशिक़ सारे लूट गए
हर तरफ मुर्दनी-सी,
तबाहियों का मंजर है।
वो तो है रहगुज़र
मय्यतों की किसको फ़िकर
हर आरज़ू से बेखबर
मिन्नतें तमाम बेअसर
पनपी नहीं मोहब्बत,
जिगर उनका बंजर है।

-©नवल किशोर सिंह

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