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25 Oct 2016 · 1 min read

हुक्म था अलगाव का सो तामील तक गये

हुक्म था अलगाव का सो तामील तक गये,
आंसू जो मिले प्यार में वो लील तक गये,

रिश्तों की पतंग थी बेकाबू सी मेरी,
उसको सम्हालने हम डोर की ढील तक गये,

प्रेम और वफा बात है पुरानी किताबों की,
अब रिश्तों से भरोसा और शील तक गये,

मौसम न जाने क्यों नम है लग रहा मुझको,
न आंसू ही गिरे है न अभी झील तक गये,

पुरानी ही चुभन है या लगा नया कांटा,
सच जानने को दिल में लगी कील तक गये,

तुझ बिन नहीं रोशनी दिवाली के दियों में,
न खिलौने हमें जंचे न हम खील तक गये।

पुष्प ठाकुर

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