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3 Jul 2020 · 1 min read

हुआ कुछ नहीं

होना बहुत कुछ था हुआ कुछ नही
ख़्वाहिशें बहुत थी मिला कुछ नहीं

अपने हुनर से लिखो तक़दीर अपनी
हाथों की लकीरों में लिखा कुछ नहीं

एक दूसरे का बुरा चाहता है आदमी
और इससे ज़्यादा बुरा कुछ नहीं

एक पल में सौर बार जियो ज़िंदगी
कब साँस थम जाए पता कुछ नहीं

खुद को बना लिया है मशीन की तरह
इंसान में इंसान जैसा बचा कुछ नहीं

तुमने जो नफ़रतों की राह चुनी है ‘अर्श’
इस राह में तबाही के सिवा कुछ नहीं

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