हालात मेरे देश के
हालात मेरे देश के खराब हो गए,
अंगूर थे ये पहले अब शराब हो गए।
जब तलक थे बेल में, चैन था इन्हें।
तोड़ दिया बेरहमी से, चाहिन्दों ने,
चाहने वाले भी अब बेनकाब हो गए।
थे गुल जब तलक गुलशन में थी खुशबू ,
खुशी-ए-आकाई चाह में उजाड़ बगिया
काग़ज़ के फूल अब महक़दार हो गए।
खुशियाँ ही खुशियाँ थीं छोटे से घर में,
महलों की चाहत में दीवार बन गई,
बेवजह ही हम इतने समझदार हो गए!
के आर परमाल मयंक