Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Sep 2020 · 5 min read

हाफ टिकट

स्कूल से घंटा गोल करके फ़िल्म देखने का मज़ा कुछ अलग ही है । जिन्होंने इसका मज़ा कभी नहीं लूटा उनसे इसका पूर्ण आनंद लेने के लिए मेरा सुझाव है कि आप इस लेख को पढ़ने के दौरान अपने ख्यालों में अपनी वर्तमान आयु से बाहर जाकर फ्लैशबैक में अपने जीवन के बसंत काल अर्थात किशोरावस्था में कुछ रोमांचक , जोख़िम से भरा और नया कर गुज़रने की तीव्र तमन्ना लिये कुछ देर के लिए प्रवेश कर जाएं ।
गोस्वामी तुलसीदास जीने ठीक कहा है कि –
बिनु सत्संग विवेक ना होई ,
बिनु हरि कृपा दुर्लभ सोई ।
इसी प्रकार इस अवनति मार्ग पर जब तक आप कुसंगति ( बुरी संगत ) में नहीं पड़ेंगे तब तक यह अशुभ अवसर प्राप्त नहीं कर सकेंगे अतः अब आपको पढ़ाकू लोगों से अपनी मित्रता त्याग कर कुटेवों में पड़े लोगों की कुसंगति में चले जाना चाहिए और यह काफी कुछ प्रभु की कुदृष्टि और आपके प्रारब्ध पर निर्भर करता है । आपके स्कूल का प्रशासन या प्रधानाध्यापक कितना ही कठोर क्यों ना हो आपको स्कूल से भगा कर सिनेमा दिखाना आपकी कुसंगत की जिम्मेदारी बनती है ।
ऐसे में आप यह पिक्चर एक बार में पूरी नहीं देख पाएंगे अतः इसमें आपको आधी ही पिक्चर देखने को मिलेगी और आपको यह निर्णय आपको करना है कि आपको मध्यांतर से पहले की पिक्चर देखनी है या उसके बात की ।
मान लीजिए यदि आप का स्कूल सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक का है और प्रधानाचार्य एवं स्कूल के कड़े अनुशासन और स्कूल से ऐसी फ़रारी को नियंत्रण में रखने के कारण आपकी हाज़री दिन में दो बार ली जाती है , पहली प्रार्थना के बाद पहले घंटे में और दूसरी मध्यांतर के बाद पांचवें पीरियड में , अब पहले पीरियड में हाज़री के दौरान अध्यापक को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद आपको अपनी कापी किताबें समेट अपनी कुर्सी से उतर कर मेज़ और कुर्सी के नीचे , बीच वाले स्थान में बैठ जाना चाहिए तथा इससे पहले कि अध्यापक महोदय अपना सिर विद्यार्थियों की अटेंडेंस पूरी कर उपस्थिति पंजिका से अपना सिर ऊपर उठाएं , आप घुटनों और कोहनी के बल चलते हुए कक्षा के पिछले दरवाजे से अपनी मण्डली के साथ बिना पीछे मुड़ कर देखे तीर की तरह बाहर निकल लें । अब पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार आपको अपनी साइकिल , साइकिल स्टैंड पर लाइन से थोड़ा अलग खड़ी मिलेगी जिससे उसे निकालने में आसानी हो । यहां से निकल कर आपका काफिला सीधे पिक्चर हॉल पर जाकर रुकेगा । पिक्चरें ऐसे में दो प्रकार की होती है एक नई फुल रेट वाली दूसरी पुरानी हाफ रेट वाली अब क्योंकि आप शो के बीच में पहुंचे हैं तो कुछ ही देर में मध्यांतर होने वाला होगा और आपको इस फिल्म का हाफ टिकट यानी कि मध्यांतर के बाद की आधी फिल्म देखने के लिए अद्धा टिकट मिल जाएगा उसकी कीमत भी हाफ रेट वाले टिकट की भी आधी होगी ।
मध्यांतर में पिक्चर हॉल के अंदर बैठी भीड़ बाहर निकलेगी और उसमें से आप ही की तरह कुछ अन्य लोग जो अपनी पढ़ाई की कक्षा के घण्टे गोल करके इस फिल्म का मध्यांतर से पहले का आधा हिस्सा देख रहे थे बाहर आकर अपना टिकट बेचना चाहेंगे । थोड़ी देर वहीं खड़े रहने पर कुछ लोग हाथ में आधा फटा हुआ टिकट लेकर और बगल में आप ही की तरह कॉपी और किताबें दबाये मुंह से अद्धा – अद्धा ले लो की आवाज में आवाज निकालते नजर आएंगे । आप उनसे मोलभाव करके वह आधा टिकट खरीद लीजिए और हॉल के अंदर आगे जाकर बैठ जाइए । जिस प्रकार जेल में मिलने के लिए अंदर जाने वाले रिश्तेदार की कलाई पर प्रवेश से पहले एक जेल की गोल मोहर लगा दी जाती है जोकि उसे जेल से बाहर आने तक सुरक्षित रखनी होती है उसी प्रकार कुछ होशियार पिक्चर हॉल के मैनेजर अपने ऐसे भगोड़े दर्शकों की कलाई पर सामने की ओर एक गोल मोहर पिक्चर हॉल की लगा देते हैं , जिससे कि वह दर्शक मध्यांतर के बाद अपना टिकट ना बेच पाए , आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि उस हॉल में कलाई पर मोहर लगाने वाला नियम अमल में न लाया जा रहा हो ।
ऐसे हॉल के अंदर प्रवेश करने के बाद हो सकताा है आपको सिनेमा के पर्दे से निकटतम दूरी पर लगी बेंचों पर बैठने का स्थान प्राप्त हो जाए । ऐसी बेंचों पर सीट नंबर की व्यवस्था नहीं होती है और उस पर 5 से 10 लोग तक आपस में सट – सट कर बैठ सकते हैं । उस बेंच पर बैठने वालों की संख्या हॉल के बाहर बिके टिकटों की संख्या पर निर्धारित होती है । अब आप चौकन्ने हो केे बैठ जाइए , थोड़ी ही देर में आपके सामने मध्यांतर के बाद कि बाकी बची फिल्म प्रक्षेपित की जाएगी । 70 एमएम सिनेमैस्कोप के बड़े पर्दे युक्त पिक्चर हॉल के पर्दे सामने सबसे आगे बैठकर आपको पूरे परदे को अपनी आंखों की परिधि में लाने के लिए अपने अपनी आंखों को दाएं बाएं घुमा कर ही आप इस आतिउन्मादी चलचित्र को देख पाएंगे । दृष्टि के एक ही फोकस में कलाकारों का सर्वांगीण दर्श कर पाना यहां से दुर्लभ हो गा।
उसमें से कुछ दर्शक जिनके बजट में आधे का आधा टिकट खरीदने के बाद बाद भी पैसे बचे होंगे वे शराब का एक अद्धा किसी गाने के बीच डकार जाएंगे। उनमें से कुछ को थोड़ी देर बाद लघुशंका महसूस होने पर वे अपनी बेंच पर से उतर , आगे बढ़कर वहीं पर्दे के सामने लघुशंका निवारण करने बैठ जाएंगे। अब आपको पिक्चर हॉल के पास पर्दे के नीचे फर्श पर जो पानी सा इकट्ठा था उसमें से उठती अमोनिया गैस , ठर्रे वाली देसी शराब , बीड़ी के धुंए और पसीने की एक मिश्रित दुर्गंध जो उस हॉल के अंदर छाई है का रहस्य भी पता चल जाएगा ।
इन सब के बीच अब इधर हॉल में यह पिक्चर खत्म होगी और उधर स्कूल में इंटरवल हो गया होगा अतः आप मेरे साथ क्लास में पहुंचकर पांचवें पीरियड में इंटरवल के बाद होने वाली अपनी हाज़री लगवा कर बाकी दिन की पाठशाला पूरी कर सकते हैं ।
यदि इतने रोमांच से अभी भी आपका दिल नहीं भरा है तो अब अगले दिन आपको इसी प्रकार इंटरवल के बाद पांचवें पीरियड से भाग कर इस फिल्म का इंटरवल से पहले का भाग देख कर शाम को आपके घर समय से निर्विघ्न पहुँच जाना चाहिये ।
यदि आप पढ़ाकू भी हैं तो विषय का अध्ययन पूरा ना हो पाने की चिंता कदापि ना करें , यही मास्टर साहब जो दिन में स्कूल में पढ़ाते हैं , शाम को अपनी कोचिंग की क्लास में इससे बेहतर ढंग से यही विषय आपको पढ़ा देंगे । आप इस फिल्म को इस तरह स्कूल से ग़ायब हो कर देखने के बाद अपने मन में किसी भी प्रकार का अपराध बोध भी मत होने दीजिए गा , यह अक्सर बड़े-बड़े महापुरुषों की निशानी होती है । जैसा कि आप सब जानते हैं की हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की आत्मकथा के अनुसार अपने युवाकाल में कुटेवों में पड़ कर उन्होंने क्या क्या किया था ।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 697 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
खुद की नज़रों में भी
खुद की नज़रों में भी
Dr fauzia Naseem shad
"संविधान"
Slok maurya "umang"
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
लग जाए गले से गले
लग जाए गले से गले
Ankita Patel
बहुत अहमियत होती है लोगों की
बहुत अहमियत होती है लोगों की
शिव प्रताप लोधी
शायर जानता है
शायर जानता है
Nanki Patre
हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा
हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा
Sanjay ' शून्य'
रमेशराज की एक हज़ल
रमेशराज की एक हज़ल
कवि रमेशराज
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
gurudeenverma198
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
भोर सुहानी हो गई, खिले जा रहे फूल।
surenderpal vaidya
बर्फ की चादरों को गुमां हो गया
बर्फ की चादरों को गुमां हो गया
ruby kumari
■ व्हीआईपी कल्चर तो प्रधान सेवक जी ने ख़त्म करा दिया था ना...
■ व्हीआईपी कल्चर तो प्रधान सेवक जी ने ख़त्म करा दिया था ना...
*Author प्रणय प्रभात*
कहां नाराजगी से डरते हैं।
कहां नाराजगी से डरते हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
*आइसक्रीम (बाल कविता)*
*आइसक्रीम (बाल कविता)*
Ravi Prakash
माँ की कहानी बेटी की ज़ुबानी
माँ की कहानी बेटी की ज़ुबानी
Rekha Drolia
🥀✍ *अज्ञानी की*🥀
🥀✍ *अज्ञानी की*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सौगंध
सौगंध
Shriyansh Gupta
सफर पर निकले थे जो मंजिल से भटक गए
सफर पर निकले थे जो मंजिल से भटक गए
डी. के. निवातिया
5 हाइकु
5 हाइकु
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
💐प्रेम कौतुक-439💐
💐प्रेम कौतुक-439💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
3015.*पूर्णिका*
3015.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
लोगों के अल्फाज़ ,
लोगों के अल्फाज़ ,
Buddha Prakash
वो कपटी कहलाते हैं !!
वो कपटी कहलाते हैं !!
Ramswaroop Dinkar
एक जिद मन में पाल रखी है,कि अपना नाम बनाना है
एक जिद मन में पाल रखी है,कि अपना नाम बनाना है
पूर्वार्थ
काला न्याय
काला न्याय
Anil chobisa
देश भक्ति
देश भक्ति
Sidhartha Mishra
Khuch chand kisso ki shuruat ho,
Khuch chand kisso ki shuruat ho,
Sakshi Tripathi
रामलला के विग्रह की जब, भव में प्राण प्रतिष्ठा होगी।
रामलला के विग्रह की जब, भव में प्राण प्रतिष्ठा होगी।
डॉ.सीमा अग्रवाल
पुस्तक समीक्षा -राना लिधौरी गौरव ग्रंथ
पुस्तक समीक्षा -राना लिधौरी गौरव ग्रंथ
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
Loading...