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2 Sep 2018 · 5 min read

हाइकु

हाइकु

“आतंकवाद”हाइकु

(1)गिद्द नज़र
मौत के सौदागर
ये घुसपैठी।

(2)मेरी ज़ुबानी
दहशती बोलियाँ
लहू कहानी।

(3)आतंकवाद
दरिंदगी का नाम
रोए इंसान।

(4) है अमानुष
तेज़ाब सा हैवान
खूनी शैतान।

(5)आतंकी छली
हृदय विदारक
चालें चलते।

(6)शैतानी चाल
ओढ़े खूनी चादर
सपने छीने।

(7)खौफ़ दिखाते
षड़यंत्र रचाते
लहू बहाते।

(8)करें संहार
बंदूकें हथियार
उजड़ी बस्ती।

(9)बेबस चींखें
खूनामही हो गिरा
सिंदूर धुला।

(10)ध्येय हमारा
एकजुट हो जाओ
देश बचाओ।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“प्राकृतिक आपदाएँ”
(प्रलय, आँधी, ज्वालामुखी, अकाल, भूकंप, बाढ़, तूफ़ान, सुनामी)

(1)बढ़ी आबादी
प्रकृति की बर्बादी
जीवन हानि।

(2)रेतीली आँधी
तबाही का मंज़र
दबी सभ्यता।

(3)ईर्ष्या की आँधी
उड़ा ले चली घर
बिखरे रिश्ते।

(4)मन की ज्वाला
धधकते अंगारे
सिसकती भू।

(5)रुलाई धरा
उगल कर लावा
ज्वालामुखी ने।

(6)पड़ा अकाल
बारिश को तकते
प्यासे नयना।

(7)भूकंप कोप
कुदरती कहर
दरकी धरा।

(8) आई बाढ़
बहाकर ले गई
सुख सपने।

(9)तेज़ तूफ़ान
समंदर का क्रोध
डूबे जहाज।

(10)नाम सुनामी
काम प्रलयंकारी
बहती लाशें।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“मेंहदी” (हाइकु)

(1)मन भावन
मेंहदी रचे हाथ
पिया का साथ।

(2)पीस पत्तियाँ
करतल सजाईं
खूब रचाईं।

(3)मेंहदी लगी
जो पिया मन भाई
सुर्ख कलाई।

(4)प्रीत बढ़ाएँ
मेंहदी रचे हाथ
पिया का साथ।

(5)चाहत भरी
सावन की पहेली
लाल हथेली।

(6)प्यार हमारा
मेंहदी पर नाम
लिखा तुम्हारा।

(7)नई नवेली
मेंहदी की हथेली
सुख श्रृंगार।

(8)आया सावन
मेंहदी रचे हाथ
सखियाँ साथ

(9)रची हथेली
मेंहदी से महकी
पी के नाम की।

(10)मेंहदी पिसी
सुर्ख हथेली रची
सुख सौभाग्य।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“पर्यावरण संरक्षण” हाइकु

(1)धरा उदास
दहकते पलाश
मेघा बरसो।

(2)बढ़ी आबादी
प्रकृति की बर्बादी
जंगल कटे।

(3)बहा तेजाब
प्रदूषित सैलाब
धरती रोई।

(4)फूटा बादल
भिगोया मरुस्थल
गीला आँचल।

(5)पेड़ लगाओ
प्रदूषण हटाओ
वन बचाओ।

(6)दूषित वायु
नगरीय जीवन
निगल रही

(7)सुंदर सृष्टि
विषाक्त प्रदूषण
मृत्यु प्रकोप

(8)कटते वृक्ष
हरियाली बचाओ
पौध उगाओ

(9)हानिकारक
रसायन रिसाव
नदियाँ पीतीं

(10हरित आभा
हो सतत् विकास
दृढ़ संकल्प

(11)पेड़ लगाओ
प्रदूषण घटाओ
प्राण बचाओ

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“ग्रीष्म ऋतु हाइकु”
***************

(1)भीषण ताप
पनघट उदास
प्यासा सावन

(2)चेहरा पीला
यौवन मुरझाया
मन वीरान

(3)तपती गर्मी
पतझड़ सा सूखा
मेघा बरसो

(4)लू का कहर
बरगद की छाँव
ढूँढ़े शहर

(5)क्रोधित भानु
धधकती अवनि
लावा उगले

(6)लू के थपेड़े
जलता मरुस्थल
गगन तले

(7)जेठ बैसाख
उजड़े उपवन
बढ़ा संताप

(8)सूखी गागर
झुलसे तरुवर
बेघर पंछी

(9)सूखी है खेती
कृषक का जीवन
बना परीक्षा

(10)जन निढाल
टपटप पसीना
गीले वसन

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
“वर्षा ऋतु” हाइकु
**********
(१) काले बादल
हँसता मरुस्थल
सौंधी खुशबू ।

(२)काली चूनर
सतरंगी डोरियाँ
दामिनी ओढ़े ।

(३)मेघ मल्हार
बूँदों की सरगम
भीगा मौसम ।

(४)भीगी पलकें
नयना नीर भरे
मेघा बरसे ।

(५)बूँदों का स्पर्श
पर्वत सकुचाए
धरा मुस्काए ।

(६)मेघा बरसे
सावन उपहार
कौंधी दामिनी ।

(७)प्रीत का मेला
सावन अलबेला
वर्षा की झड़ी ।

(८)बरखा प्रीत
बरसाती संगीत
नाचे मयूर ।

(९)तडित प्यास
पनघट उदास
बरसो मेघा ।

(१०)बरखा डोली
बिरहन बदली
भीगी पलकें ।

(11) वर्षा बौछार
पायल खनकाती
प्रीत रुलाती।

(12)बारिश आती
बूँदों की सरगम
राग सुनाती।

(13)विरहा रात
बैरन बन जाती
याद सताती।

(14) कर श्रृंगार
सखियाँ मदमातीं
कजरी गातीं।

(15)बिखरे ओले
मोती सम आँगन
बटोरे धरा।

(16)काले बादल
झूम के बरसे
नाचे मयूर।

(17)भीगी चूनर
महकता यौवन
गोरी लजाए।

(18)प्यासी धरती
बादलों से कहती
मेघा बरसो।

(19)प्यासे नयन
विरह में सावन
अश्रु बहाता।

(20)ओ काली घटा
चंदा को साथ लिए
छत पर आना।

(21)नन्ही फुहारें
तन को भिगोकर
गले लगातीं।

(22)मेघा बरसे
भिगोया तन-मन
सूरज हँसा।

(23) चाँद शर्माया
बादलों की ओट से
सबने देखा।

(24) ठंडी बयार
मतवाला मौसम
धरती खिली।

(25)ओस की बूँदें
नहाए कचनार
चमके मोती।

“धूप”

(1)धीमी बौछार
तन-मन भिगोए
धूप नहाए।

(2)जलती धरती
छिपती वन-वन
तपती धूप।

(3)हर झरोखा
खिड़की दरवाज़ा
झाँकती धूप।

(4)आँख-मिचौली
बादल संग खेले
चंचल धूप।

(5)आई भू पर
लहरों संग मस्ती
करती धूप।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
“वसंत” हाइकु

(1)आया वसंत
मेरे घर-आँगन
खिले पलाश।

(2)नव कोंपलें
मदमाती सी प्रीत
मनवा झूमे।

(3)प्रीत के रंग
प्रणय का उत्सव
लाया वसंत।

(4)पिया वसंत
चंचल चितवन
बौराया मन।

(5)वासंती हवा
मीठी प्रीत जगाए
प्रीतम आए।

(6)स्वर्णिम आभा
वसुधा पुलकित
झूमा वसंत।

(7)रागविलास
ऋतुराज सुनाता
मन वासंती।

(8)फूलों की हँसी
चिड़िया का संगीत
प्रीत जगाए।

(9)सरसों फूली
वसुधा ने पहनी
चूनर पीली।

(10)खिले पलाश
नस-नस में घोले
प्रीत की आस।

(11)वासंती प्यार
महका ऋतुराज
अंग उमंग।

(12)भ्रमर झूलें
बैठे आम्र की डाली
हवा झुलाए।

(13)कस्तूरी गंध
वसंत मनमीत
साँसें महकीं।

(14)कली मुस्काई
मंद-मंद बयार
झुलाती झूला।

(15)प्रेम के गीत
आसमान में गूँजे
गोरी मुस्काई।

(16)रजनी रीझी
प्रीतम घर आए
दो-दो वसंत।

(17)मुस्काया भानु
हल्की सी सिहरन
देह को भाती।

(18)पीली चादर
सरसों का बिछौना
तन महका।

(19)आम के बौर
तरुवर पे छाए
भौंरे मुस्काए।

(20)केसरी धूप
वसंत छितराता
अनोखे रंग।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

विषय-हाइकु

(1)भीषण ताप
पनघट उदास
प्यासा सावन

(2)जेठ बैसाख
उजड़े उपवन
बढ़ा संताप

(3)सूखी गागर
झुलसे तरुवर
बेघर पंछी

(4)सूखी है खेती
कृषक का जीवन
बना परीक्षा

(5)जन निढाल
टपटप पसीना
गीले वसन

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी, (उ.प्र.)
चाँद पर हाइकु
************

नभ से चाँद
परात में उतरा
खेलें श्रीराम।

चाँद निकला
पर तुम न आए
छाई उदासी।

चौथ की रात
सजी है सुहागन
पूजती चाँद।

चंदा मामा
कह माँ फुसलाती
खेल खिलाती।

थाली में चंदा
गरीब की रोटियाँ
भूख मिटाए।

प्यारा मुखड़ा
चौदहवीं का चाँद
सजी दुल्हन।

धवल ज्योत्स्ना
शारदीय पूर्णिमा
सुई पिरोई।

शिशिर रात
ठिठुरता है चंदा
मुस्काई ओस।

चंदा ने लूटी
नयनों से निंदिया
बैरी सजन।

घूँघट ओट
कैसे करूँ दीदार
छिपा है चंदा।

विरहा रात
दिल को जलाता है
दीवाना चाँद।

चाँदनी रात
झील में नहाता है
चाँद कंवल।

चाँद सी बिंदी
चमके चमचम
रात उजास।

चंदा रे चंदा
महकती चाँदनी
साथ में लाना।

चाँद सी गोरी
निखरता यौवन
रूप श्रृंगार।

रात्रि पथिक
निशा का हमराही
आवारा चंदा।

विरह व्यथा
अमावस की रात
चंदा सिसके।

ईद का चाँद
गले मिलके लोग
खुशियाँ बाँटें।

चाँद सा मुख
केसरिया बालम
आकुल मन।

डॉ. रजनी अग्रवाल’वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी।
“करवाचौथ”

(1)मैं सुहागन
पलटती करवा
लाल जोड़े में।

(2)करवाचौथ
सात जन्मों का रिश्ता
मन विश्वास।

(3)हाथ करवा
चंद्रमा की प्रतीक्षा
पिया का साथ।

(4)लाल बिंदिया
माँग भरा सिंदूर
पूजूँ करवा।

(4)चौथ का चाँद
सुहागनें पूजतीं
अर्घ्य देकर।

(5)चाँद सी गोरी
सितारों की चुनरी
पूजे करवा।

(6)प्रीत अटल
पति पिलाए जल
व्रत सफल।

(7)दूधिया चाँद
महक रही प्रीत
गोरी शर्माए।

(8)चाँद की पूजा
जन्म-जन्म का साथ
सच्ची प्रीत का।

(9)करवाचौथ
सुहागनों का व्रत
चाँद प्रतीक्षा।

(10)पावन पर्व
सजती सुहागन
देखता चाँद।

(11)चौथ का चाँद
बदली में छिपा है
ढूँढो साजन।

(12)चाँद निहारूँ
छलनी से अपनी
प्रीतम साथ।

(13)देना आशीष
सदा सुहागन का
करूँ अर्चना।

(14)चौथ का चाँद
सुहागन दे अर्घ्य
मन में आस्था।

(15)सुर्ख हथेली
चंदा का मुख देखूँ
प्रीत सजाए।

डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ. प्र. )
संपादिका-साहित्य धोहर

Language: Hindi
486 Views
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