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12 Jan 2019 · 1 min read

* हवा का रुख बदल दो तुम *

हवा का रुख बदल दो तुम
अगर जवानी तुममें बाकी है
रवानी होगी इक दिन तो
जवानी क्या यूंही गवानी है
कब तक वार से बचते रहोगे
सीखो अब तो वार करना तुम
नहीं गंवार तुम हो अब
क्यूं अब इतने घबराते हो
मरना रोज इक दिन है
फिर मर-मर क्यों जीते हो
हवा का रुख बदल दो तुम
अगर जवानी तुममें बाकी है
जातिगत भेद होता आया है
आर्थिक आधार-आरक्षण चाहे
किसी ब्राह्मण, ठाकुर ,बनिये की
इज्ज़त लूट देखो तुम फिर
वो कैसे घर फूंक देते हैं
लोग तमाशा देखें फिर-फिर
कहते रब देखता सब है
पर दुनियां मानती है कब
हवा का रुख बदल दो तुम
अगर जवानी तुममें बाकी है
ये नेता- नेतागिरी ग़ुलामी है
क्यों स्वत्व अपना खोते हो
अभी भी जाग जाओ तुम
अभी दिवस होना बाकी है
दिल का कोना-कोना देखो
अभी भी रोना बाकी है
हवा का रुख बदल दो तुम
अगर जवानी तुममें बाकी है ।।
मधुप बैरागी
ब्राह्मण ,ठाकुर, बनिया मनोवृति के लोगो से तात्पर्य है किसी जाति विशेष से कोई मतलब नहीं है । ये चतुर्वर्ण में कोई भी हो सकता है।

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 1 Comment · 489 Views
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