हर ख़ुशी तब निहाल करती है
हर ख़ुशी तब निहाल करती है
जब वो ग़म को निढाल करती है
उल्टे-सीधे सवाल करती है
पर बुरा ज़ीस्त हाल करती है
दिल को घायल करे, नज़र को नहीं
ये नज़र भी कमाल करती है
इक तमन्ना है दीद की तेरे
सारी दुनिया सवाल करती है
याद तेरी सदा बसी दिल में
ज़िन्दगी को मुहाल करती है
रोज़ पहलू में रात में धड़कन
शोर करती धमाल करती है
फ़िर भी समझा सका न दिल को मैं
आरज़ू भी बवाल करती है
वक़्त पर कह सके न उनको कुछ
अब ज़ुबां ये मलाल करती है
एक तरक़ीब प्यार की उम्दा
काम ये बेमिसाल करती है
फिर से आनन्द लौट आया क्यों
हर ग़मी ये सवाल करती है
– डॉ आनन्द किशोर