हर मर्द जल्लाद नहीं होता
हर आदमी भेडिया और बाझ नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता
माना कुछ है हैवान जो करते है हैवानियत
अपने कुकर्मों से शर्मसार करते हैं इंसानियत
किन्तू सब उनके जैसे घाघ नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता।
हर दिन मर्दों पर इल्जाम लगाया जाता हैं
मौका दर मौका हैवान बताया जाता है
सबके नीयत में खोट मन में पाप नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता।
औरत और मर्द इस जहाँ की धुरी है
इनके असतित्व से ही यह सृष्टि पूरी है
बीना एक दुजे इस जग का निर्माण नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता।
राम बीना यहाँ सीता की चर्चा भी अधुरी है
कृष्ण अगर जो ना हुये राधा भी कहा पूरी हैं
बीना राम यहाँ सीता का पहचान नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता।
कही पिता कहीं पुत्र कहीं भाई बन जाता है
खुद को भुल जाता किन्तु हर फर्ज निभाता है
हर दिन चोट खाता किन्तु उसे दर्द का एहसास नहीं होता
इस जहाँ का हर मर्द जल्लाद नहीं होता।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
9560335952
23/8/2017