हर तमन्ना अज़ाब लगती है
जिन्दगी अब खराब लगती है
बिन तुम्हारे अज़ाब लगती है
करके सोलह सिंगार आए तो
परी वो लाज़वाब लगती है
चाल मस्ती की चाँद सा चेहरा
चश्मे जानाँ शराब लगती है
टूट कर दिल ने ये कहा अब तो
हर तमन्ना —— अज़ाब लगती है
गौर से देख उसको बोतल सी
बंद कुह्ना शराब लगती है
जब भी देखा उसे मुहब्बत से
मेरा खाना ख़राब लगती है
बात हाँ की कहाँ है “प्रीतम” की
तेरी न लाज़वाब लगती है
??? प्रीतम राठौर ???
??श्रावस्ती (उ० प्र०)??
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