हरी मिलेंगे….!
हरी मिलेंगे..!
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मन के पट को खोल रे
तोहे हरी मिलेंगे
हरी मिलेंगे तोहे हरी मिलेंगे
तोहे प्रभु मिलेंगे
मन के पट को खोललललललल….रे
क्यों तूं भटके द्वारे द्वारे
मंदिर, मस्जिद, गीरी , गुरुद्वारे
मन अखियन को खोल रे
तोहे हरी मिलेंगे
मन के पट को खोल रे…….।
क्यों तू ढूंढे बाहर बाहर
हर पल है वो तेरे ही अंदर
चीत अपना पहचान रे
तोहे हरी मिलेंगे
मन के पट को खोल रे……..।
जनम जनम से भाग रहा है
फिर भी तूं ना जाग रहा है
चक्षु ज्ञान की खोल रे
तोहे हरी मिलेंगे
मन के पट को खोल रे………..।
राम को ढूंढे, श्याम को ढूंढे
गुरुग्रंथ, अल्लाह, घनश्याम को ढूंढे
खुद में खुद को ढूंढ रे
तोहे हरी मिलेंगे
मन के पट को खोल रे………..।
काशी काबा मथुरा ढूंढे
अपने अंदर क्यों ना ढूंढे
मन के अंदर देख रे
तोहे हरी मिलेंगे
मन के पट को खोल रे……
तोहे हरी मिलेंगे
राम मिलेंगे
अल्लाह और घनश्याम मिलेंगे!!
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”