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4 Oct 2020 · 1 min read

हरिणी छंद “राधेकृष्णा नाम-रस”

हरिणी छंद “राधेकृष्णा नाम-रस”

मन नित भजो, राधेकृष्णा, यही बस सार है।
इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।
चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।
भगत जन के, प्राणों में ये, सुधा बरसावनी।।

जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।
परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।
बहुत महिमा, नामों की है, इसे सब जान लें।
सब हृदय से, संतों का ये, कहा सच मान लें।।

अति व्यथित हो, झेलूँ पीड़ा, गिरा भव-कूप में।
मन तड़प रहा, डूबूँ कैसे, रमा हरि रूप में।।
भुवन भर में, गाथा गाऊँ, सदा प्रभु नाम की।
मन-नयन से, लीला झाँकी, लखूँ ब्रज-धाम की।।

मन महँ रहे, श्यामा माधो, यही अरदास है।
जिस निलय में, दोनों सोहे, वहीं पर रास है।।
युगल छवि की, आभा में ही, लगा मन ये रहे।
‘नमन’ कवि की, ये आकांक्षा, इसी रस में बहे।।
=============
लक्षण छंद: (हरिणी छंद)

मधुर ‘हरिणी’, राचें बैठा, “नसामरसालगे”।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।

“नसामरसालगे” = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
चार चरण, दो दो समतुकांत।
****************
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
03-10-20

Language: Hindi
1 Comment · 316 Views
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