हरजन कल्याण
यह कैसा हरिजन कल्याण,
हरि के जनो के मध्य मची हो,
जहाँ,लुट और खींचतान,
कौन नही यहाँ हरि का जन,
फिर क्यों बांटते इनका मन,
किया किसी ने क्या सोध गहन,
या योंही पैदा कर दी यह उलझन,
मत खिलवाड करो इनके संग,
शुभ नही हैं यह लक्षण,
निवेदन है यह बन्धुजन,
लौट पडो और करो पुनर विचार,
है करना सभी का उद्धार,
यही होगा मानवता पर उपकार,
प्यार मोहब्बत का भ्रम ना फुटे,
आस्थाओं का सब्र ना टुटे,
नव परिवेश में,नये होश में,
मिल कर करें नव निर्माण,
जहाँ हो सकेगा, सबका कल्याण,
सही परिवेश में,यही तो है हरजन का कल्याण,।