हम राम भजें -दुर्मिल सवैया/मत्तगयंद सवैया
छंद – मत्तगयंद सवैया
विधान – 7(२११) भगण + गा गा =21+2 = 23 वर्ण.
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मत्तगयंद सवैया :-
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(१)
मोर पखा अति भाल सजे नित कानन कुंडल सीप सुघारी।
देखि रहे नभ से छवि मोहन की मनमोहक सी अति प्यारी।।
देखि नहीं कबहूं पहले यह मोहन की मनसी छवि न्यारी।।
सुंदर रास रचें बृज में चितचोर सखींन हुईं बलिहारी।।
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(२)
मोहन की छवि भाय रही अति गोकुल ग्वाल हुए बलिहारी।
सोहनि सूरत मोहनि मूरत मोहन की छवि है अति प्यारी।
लाल गुलाल फबे अति भाल कमाल लगें गिरि के गिरधारी।
खेलि रहे कहुं छेडि रहे बहु दीखत हैं वह खूब खिलारी ।।
छंद- दुर्मिल सवैया ( वर्णिक ) शिल्प – आठ सगण(४ *८ =२८ )
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११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२
हम राम भजे हम कृष्ण भजें मन में बस राम समाय रहे।
मन चंचल है मन दुर्बल है हरि साँस लबों बिच छाय रहे।।
हरि नाम भला सतनाम भला मन में यह गीत बजाय रहे।
दिल से हम टेर करें हरि से हम नाहक शोर मचाय रहे।।
“अटल मुरादाबादी ”
जब आय चुनाव गए सर पे तब वोटन माँगन चाल दियो ।
बहु बार बने सरकार बने जन प्यार तिहार गँवाय दियो।।
इस बार रखो मम लाज सुनो मन की मनुहार बताय दियो।
अब की बस बार जिता कर के मम कंटक सार हटाय दियो।