हम बेटियाँ
हम बेटियाँ
सवाल यह नही की बेटी को
क्यो नही पढ़ाया
सवाल यह भी नही की बेटी को
क्यो नही बचाया
सवाल तो है कि खुद में पढ़ने की जागृति को
क्यो नही जगाया
सवाल तो है कि स्वयं बचने की योग्यता उसे कभी
क्यो अवगत नही कराया
सवाल यह नही की बेटी को बेटे समान
क्यो कभी नही माना
सवाल यह भी हैं कि उसे हर पल पराई का
अहसास क्यो दिलाया
सवाल तो बस ये हैं कि क्या बेटी ने बेटे सा
प्यार नही किया
सवाल तो बस ये हैं कि क्या बेटे सी पीड़ा से ही माँ ने
उसे जन्म नही दिया
सवाल ये नही है कि बेटी को दोनो घरों में पराया ही
क्यो बताया गया
सवाल तो बस ये हैं कि जन्म देने वालो ने ही
पराया क्यो बताया
सवाल तो बस ये कि क्या बेटी दिवस बस
एक दिन ही मनाना
सवाल तो बस ये कि क्या बस ही दिन का दिखावा
क्यो एक दिन ही बेटी दिवस मनाना
सवाल तो ये भी है कि संस्कार सिर्फ बेटी को ही
क्या बेटों को नही देना
सवाल ये नही कि हम बेटियां कब तक बंधेंगी परम्पराओ
की बेड़ियों में जकड़ कर
सवाल ये कि हम आजाद कब होंगी इन परंपराओं
कि जकड़ी बेड़ियों से
कब आखिर कब ..?
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद