हम पंछी एक डाल के … (कविता )
हम पंछी एक डाल के ,
भिन्न -भिन्न है हमारी बोलियाँ ,
और भिन्न -भिन्न है हमारे रंग .
भिन्न -भिन्न है हमारे आचार -व्यवहार .
भिन्न -भिन्न है जीने का ढंग .
हम पंछी हैं एक डाल के ,
डाल तो एक ही मगर विभाजित .
अलग -अलग धर्मो, जातियों ,
वर्गों में है विभाजित .
इतना ही नहीं ! भिन्न -भिन्न भाषाएँ,
भिन्न -भिन्न क्षेत्र ,और प्रत्येक क्षेत्र की अपनी- अपनी
संस्कृतियाँ और सभ्यताएं . और सभी की अपनी कहानियां .
हम पंछी एक डाल के तो हैं ,
नर और मादा ,हर उम्र के .
मगर नर का वर्चस्व अधिक है ,
उसी का साम्राज्य है बहुतायत .
मादा का स्थान उस डाल पर है भी ,और नहीं भी.
यह तो कोई नयी रवायत नहीं.
इस डाल की परम्परा सदा से यही चलती आई है.
हम पंछी एक डाल के बेशक हैं मगर ,
हमारे अधिकार और कर्तव्य भी भिन्न -भिन्न हैं.
धर्म, जाति ,वर्ग ,रंग और लिंग -भेद यहाँ ,
तो अधिकार और कर्तव्य में भी बड़ी है भिन्नताएं यहाँ.
कमज़ोर वर्ग के अधिकार कम और कर्तव्य अधिक .
शक्तिशाली वर्ग के अधिकार अधिक और कर्तव्य कम .
हम पंछी एक डाल के ,
मैना, तोते, कोयल , आदि ,
और कुछ कौए ,चील और बाज़ .
अधिकारों का शोर और अपना शक्ति -प्रदर्शन
करने वाले यह शक्तिशाली और भयानक पंछी
जब तक मौजूद .
तो निरीह ,कमज़ोर व् मासूम पंछियों की कौन सुने ?
हम पंछी एक डाल के तो हैं ,
मगर शासन तो एक ही का चलता है .
होगी जिसके हाथ लाठी ,
भेंस भी वही ले चलता है.
हम पंछी तो हैं एक डाल के ,
मगर हम में रत्ती भर भी एकता नहीं.
बड़ी- बड़ी पुस्तकों में दर्ज हो तो क्या ?
इस देश (डाल) में समानता के अधिकार वाली कोई बात नहीं.