मेरे हम नफ़स
इश्क में कितनी सांसें लूं कितनी सांसें छोड़ दूं
क्या इश्क की कश्ती को मझधार में ही तोड़ दूं
मेरे हम ख्याल मेरे हम नफ़स अपनी बाहों का हार दे
या कहे अगर तू तो मैं अपनी ही बाहें मडोड दूं
मैं बुझा रहा हूं रात भर, मेरी चमक सारी उतर गई
मुझे जिस्मों जां की खबर नहीं क्या सांस बुझा सा छोड़ दूं
गर्दो गुबार मेरी जिंदगी बस एक खुशी, तेरी ख्वाबिदगी
मेरे हम नफ़स तू रुका कहां क्या याद तेरी मैं बुहार दूं
~ सिद्धार्थ