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15 Nov 2018 · 1 min read

हम तो गए काम से

लगता है हाय रामा हम तो गए काम से
अब रोज़ रोज़ धड़कता है दिल इक ही नाम से

हम तड़पते हैं बारहाँ किसी मछली की तरहा
वो बड़े चैन से सोते हैं, अपने मकां में आराम से

दिन में फ़िर भी सुकूँ रहता है, कुछ रहता तो है
असल दर्द जो उठता है सीने में, वो उठता है शाम से

अब ज़र्रे ज़र्रे में इश्क़ ए दर्द उठने लगा इस क़दर
वो छू जाए तो कम हो, वरना क्या होगा झंडुबाम से

वो जाँ कह दे तो शिफ़ा मिलती है ,दवा मिलती है
ना ना कह दे तो जिस्म ऐसे गिरता है जैसे पत्थर धड़ाम से

हमें जब जब प्यास लगती है उन्ही को तका करते हैं
उनकी आँखों से पीते हैं ज़ाम, क्या होगा हमारा मदिरा के ज़ाम से

हम उनसे बेपनाह मुहब्बत किए जा रहे हैं लोगों
या तो हम डूबेंगे या जनाज़ा निकलेगा हमारा धूमधाम से

~अजय “अग्यार

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