हम तलाशे यार में दर दर भटकते ही रहे
यह भी ना देखा कहां कैसे भटकते ही रहे।
जुस्तजू ए यार में आगे को बढते ही रहे।
आज तक रंजो अलम के और कुछ पाया नहीं
हम तलाशे यार में दर दर भटकते ही रहे
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जब शहादत सरहदों पर अपने बेटों की सुनी
अश्क़ आंखों से लहू बन के टपकते ही रहे
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जो शहादत दे चुके हैं उन शहीदों को मिरी,
है सलामी अम्न की खातिर जो लड़ते ही रहे
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देख कर अपने ग़मों को इस क़दर क्यूं रो रहा
गुल तो खारों में भी रहकर देख हंसते ही रहे
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इक नज़र मुझ पर भी कर दे ऐ मिरी जाने जहां,
देख कर जल्वा तिरा हर पल तङपते ही रहे
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दे दिया सारा समंदर सबके हिस्से में मगर,
उम्र भर हम एक कतरे को तरसते ही रहे
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हूर इक लंगूर के हमराह जचती ही नहीं
और हम किस्मत पे अपनी हाथ मलते ही रहे
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किस तरह “प्रीतम” संवरते जिंदगी के पेचो खम,
मेरे अरमानों को लाखों साँप डसते ही रहे
प्रीतम राठौर
श्रावस्ती (उ०प्र०)