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15 Apr 2017 · 1 min read

हम जैसे शायद दिवाने नहीं है

खुला छोड़ा था जिनको दरवाजा अन्दर वो अभी तक आये नहीं है
हमने तो अपनी कहानी बता दी पर जज्वात उनने जताए नहीं है
वो नागिन के जैसी बलखाती चाले बाल अभी तक संभाले नहीं है
तुम्हारे तो पीछे जमाना है पागल पर हम जैसे दिवाने नहीं है
जान देने को तैयार है काफी पर सम्मा के काबिल परवाने नहीं है
पीने वालो की तो लम्बी कतारे लगी है पीने काबिल पैमाने नहीं है
कवि गोपाल पाठक ”कृष्णा”

1 Comment · 324 Views
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