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6 Sep 2017 · 1 min read

===हम गांव वाले हैं ===

===हम गांव वाले हैं ===

कतरा-कतरा अपनी ढूंढ रहे हैं हम पहचान,
टुकड़ा टुकड़ा ढूंढ रहे हम अपने लिए स्थान।
हम शहरों में रहने आए हमें न रास आई ये जगहें।
सारी तरफ हम ढूंढ रहे हैं अपने बीते प्यारे लम्हे।
*****
वो खुली-खुली सी खुशियाँ,
खलिहानों का खिलखिलाना,
ताजी गाजर व मूली उखाड़ धो खा जाना।
ट्यूब वैल के पानी में छककर नहाते,
मांँ के हाथों की चूल्हे पकी दाल रोटी खाते।
*****
धूल धुसरित नौनिहालों के खिलते चेहरे,
न ध्वनि न वायु प्रदूषण के थे घेरे।
सदा प्राणवायु बहती जहाँ ताजी-ताजी,
जो भी आता मेरे गाँव में दिल से राजी हो जाता।
*****
एक घर की बेटी थी पूरे गांव की बिटिया,
उस पर आंच आए तो उड़ती सारे गाँव की निंदिया।
साथ में हंसते साथ में रोते संग हर त्योहार, था मनता
यदि एक घर में शोक हुआ तो किसी भी घर में चूल्हा न जलता।
*****
अंबुआ औ नीम तले पड़ी मूंजों की खटिया,
खुशबू देती थी सौंधी-सौंधी अपने गांव की मिटिया।
पड़ते ही आती थी प्यारी सी निंदिया,
ये हुआ करती हमारी सुहानी सी दुनिया।
*****
हम कतरा-कतरा अपनी ढूंढ रहे हैं पहचान,
गांववासियों का शहर में टिकना न आसान।

—रंजना माथुर दिनांक 06/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
427 Views
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