— हम को कहाँ बोलना है —
हम को कहाँ बोलना है
हम कहाँ बोल जाते हैं
जिस जगह चुप रहना है
बस वहीँ पर बोल जाते हैं !!
जान न्योछावर कर दी
इक सैनिक ने देश पर
हम सब मौन हो जाते हैं
कट जाता गर फिल्म का सीन
झट से जुबान सब खोल देते हैं !!
आज की संतान को देखो
जमाने भर की तो सुन लेते हैं
कह दिया गर माँ बाप ने कुछ
तुरंत ऊँची आवाज में
बिना रुके जुबान खोल देते हैं !!
माल में सामान खरीद लेते हैं
मुंह मांगे दाम दे देते हैं
कहीं मेहनतकश मजदूर
मांग लेता है मेहनताना
चन्द सिक्के भी शोर कर देते हैं !!
बना लेते हैं अनगिनत हम रिश्ते
गैरों से अनजानों से बेहिचक
जरुरत होती है उन रिश्तों की
जब अपने अपने घरों में
तब जुबान खोलना भूल जाते हैं !!
कहाँ बोलना , कहाँ नही बोलना
यह उस वक्त सब भूल जाते हैं !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ