हम कम मे जी लेते हैं ।
हम कम मे भी जी लेते है
कभी कभी खुद को समझाते
कभी उर के छाले सहलाते
चुप रहकर कुछ लिख लेते है।
हम कम मे ही जी लेते है
अपना स्वभाव कुछ ऐसा है
क्या सब कुछ ही पैसा है
कुछ अभाव मे जी लेते है।
हम कम मे ही जी लेते है
मिले समय तो पढकर बढते
नही किसी से लडकर बढते
शांत रहे ओठ सी लेते है
हमकम मे ही जी लेते है।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र नरई चौराहा कुण्डा प्रतापगढ
9198989831