हमारे दुखों का मूल कारण
जो सरस हो, सरल एवं सत्य हो हम हमेशा उसी से विमुख हो अपने जीवन की परिकल्पना करते है और यही हमारे दुखों का सर्वश्रेष्ठ कारण है।
हम गरीब है किन्तु हमारी अभिलाषा अमीरों वाली है।
आज काम कर के दो सौ मिला किन्तु हम यह सोच कर खुश नहीं होते कि चलो आज मेरे पास दो सौ तो है
अपितु इस बात से दुखी अवश्य होंगे की काश कुछ अधिक कार्य किया होता या कहीं अन्यत्र कार्य किया होता तो कुछ और अधिक पैसे मिले होते।
चलने को साईकिल है तो बाईक के लिए दुखी हैं, बाईक है तो कार के लिए और जो कार है तो लक्जरी कार या हेलीकेप्टर क्यों नहीं इस लिए दुखी है।
कई तो इस बात से दुखी हैं कि उनका पड़ोसी खुश क्यों है।
हमारी पत्नी सुलक्षणा है हम खुश नहीं अपितु दुसरे की पत्नी तेज तरार है तो क्यों है हमारी क्यों नहीं, हमारी तेज तरार है दुसरे की सुलक्षणा, तो दुखी है हमारी……..?
दुख का सम्बंध ही सुख से है। आप जितना भी सुखी क्यों न हो जाये उससे कहीं बड़ा दुख आप /हम स्वतः ही पाल लेते है।
इन दुखोंसे हमें छुटकारा तब मिल सकता है जब हम निश्चय करें हमारे पास जो है, जैसा है, जितना है वह ईश्वर ने हमे खुश रखने के लिए दिया है और यहीं हमारा है
बाकी सब मिथ्या है। जैसे ही हमारी सोच सकारात्मक होगी हम स्वतः ही खुश रहने लगेंगे।
पं. सचिन शुक्ल
जय मेधा, जय मेधावी भारत।