हमसफ़र महबूब मिरे दिल इस क़दर दीवाना हुआ
हमसफ़र महबूब मिरे दिल इस क़दर दीवाना हुआ
बिन पिए शब-ए-शबाब क़ि ख़ाली मयख़ाना हुआ
इश्क़ के दरिया को जब होंटों से छुआ मैनें
ऐसा मंज़र छा गया क़ि लौट के न आना हुआ
चन्द साँसे जो बची थी वो भी रुसवा हो चली
एक हवा झोंके से आज कोई अपना बेगाना हुआ
इंसानियत के नाम पर ज़िस्म का सौदा होता है
खेल इतना आसां नहीं शहीद हर परवाना हुआ
कल तलक जो इश्क की मस्ती में रातें कटती थी
आज़ यादों के गुलशन में डूबा वो फ़साना हुआ
आलम-ए-तन्हाई ऐसी क़ि भीड़ भी तन्हा लगे
ज़ख्म खाकर मेहरबाँ एक दिल वीराना हुआ
हर तरफ ग़र्दिश ही ग़र्दिश बेवफ़ाई जो मिली
‘पूनम’ साँसों की नेमत से मौत का मिलना हुआ
— पूनम पांचाल —