हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा
रात की नमाज तुम सुबह की अजान हो तुम
हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा
लोग कहते है बर्बादियों का शबब हो तुम
समझाने को उन्हें कोई शेष तर्क नहीं रखा
मुफलिसी में भी मेरी मेरे बाकि उसूल हो तुम
टूट कर हमने समझौते का कोई हर्फ़ नहीं रखा
अब लौट भी आओ मेरी हर ख़ुशी हो तुम
याद ना आए हो ऐसा कोई पहर नहीं रखा
मेरी हर गजल में तुम हर नज्म में हो तुम
ना हो तेरा नाम हमने वो कोई वर्क नहीं रखा
मेरे होठों की हसीं, दुखते दिल की दवा हो तुम
ना हो तुम साथ मेरे , ऐसा कोई लम्हा नहीं रखा ।।
रात की नमाज तुम सुबह की अजान हो तुम
हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा