हबीब
मेरी आंखों को उसके सिवा कहां कुछ और नज़र आता
वो आयेगा एक दिन मेरे पलकों को चूमने
इसी उम्मीद में दिन और रात गुज़र जाता
ऐ हबीब मेरी आंखों को फुर्सत में शेजना
बिना बोसा लिए इस से मरा भी तो नहीं जाता
~ सिद्धार्थ
मेरी आंखों को उसके सिवा कहां कुछ और नज़र आता
वो आयेगा एक दिन मेरे पलकों को चूमने
इसी उम्मीद में दिन और रात गुज़र जाता
ऐ हबीब मेरी आंखों को फुर्सत में शेजना
बिना बोसा लिए इस से मरा भी तो नहीं जाता
~ सिद्धार्थ