हनुमत ब्यथा
सोया था मैं सपनों में
मेरे हनुमान जी आये
आकर मुझसे मन की पीड़ा
रो रो कर बतलाये।
बोले बेटे ना जाने
मुझसे क्या पाप हुआ था
युगो-युगों तक अमर रहूं
ऐसा वरदान मिला था।
तब ना सोचा था मैंने
युग ऐसा भी आयेगा
लखन राम से द्वेषीत हो
सीता पे नजर गड़ायेगा।
आज दुष्टता दुष्टों की
बश यूंही देख रहा हूँ,
दूराचार को देख-देख
बश आंखे सेंक रहा हूँ।
मेरे बल पौरुष के आगे
रावण तक घबराता था
धरा ग़गन सब मेरे कौशल
के आगे थर्राता था।
आज दशा मेरी ऐसी
इतना बलहीन हुआ हूँ मैं
देख रहा इस युग की हालत
मूक खड़ा गमगीन हूँ मैं।
पं.संजीव शुकल “सचिन”
9560335952