Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 May 2017 · 2 min read

“हँसीन लम्हों की यादें और ये ख़त”

“हंसीन लम्हों की यादें और ये ख़त”
ख़त का ज़िक्र चलते ही पिया के साथ गुज़ारे कुँवारे पलों की याद ताज़ा हो जाती है। ये वो सुहाने दिन थे जब हम राजस्हाथान की रेतीली रजत चाँदनी में, हाथों में हाथ लिए, एक-दूजे के साथ बैठे जीने के अनगिनत सपने सँजोते हुए पूरी रात तारों की छैंया में बिता दिया करते थे और जब पेड़ों से गिरती रवि की स्वर्णिम उषा हमारे तन को गुदगुदा कर भोर होने का संदेश देती तो मीठी मुस्कान, झेंपते हुए नयन, स्पंदित देह , माँ के हाथ का नास्ता हमें दैनिक क्रियाकलाप की याद दिलाकर झकझोर देता। हम तैयार होकर फिर फ़िल्म देखने चल पड़ते। एक थिएटर से दूसरे थिएटर तक ,मंदिर से उपवनों तक का सफ़र, चाट -पकौड़ी, मौज़-मस्ती करते समय रेत की तरह मुट्ठी से कब फिसल जाता कुछ पता ही नहीं चलता था। सगाई के बाद पिता के आकस्मिक निधन के कारण नौ माह तक ज़ुदाई की लंबी खाई को हमने प्यार भरे ख़तों से पाटा था। ये ख़त हमारे जवाब- सवाल में शायरी से रंगे हुआ करते थे जिन्हें फ़ुर्सत पाकर आज भी हम रोमांचित होकर पढ़ते हैं और बीते हुए पलों को याद कर फिर से जवानी के खुमार में डूब कर शरारतें करते कर बैठते हैं– आगोश में समाए ख़त पढ़ते हुए गालों पर मचलती अँगुलियों को काटना, सीने पर चुंबन देकर बालों को सहलाना,भीगी ज़ुल्फों से चेहरे पर पानी छिड़कना ,कसकसा कर अधरों को चूमना फिर एक-दूजे के हो जाना। इत्तफ़ाक से आज एक बार फ़िर मैं साजन की बाहों में सिमटी, लिपटी ख़तों के ज़रिए यादों के पुराने मंज़र तय कर रही हूँ। पिया के साथ की मधुरिम अनुभूतियों को चंद पंक्तियों में पिरोकर यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।
मुझे बाँहों में भर ख़त को सुनाना
याद आता है वो गुज़रा ज़माना

भीगी पलक को अधरों से छुआना
लोभित भ्रमरों से रसपान कराना
देकर चुंबन यूँ तन-मन दुलराना
प्यासी दरिया में ज्यूँ अगन लगाना।
मुझे बाँहों में भर ख़त को सुनाना
याद आता है वो गुज़रा ज़मानना।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 271 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
Tum hame  nist-ee nabut  kardo,
Tum hame nist-ee nabut kardo,
Sakshi Tripathi
*हारा कब हारा नहीं, दिलवाया जब हार (हास्य कुंडलिया)*
*हारा कब हारा नहीं, दिलवाया जब हार (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
23/154.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/154.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
किताबें
किताबें
Dr. Pradeep Kumar Sharma
दायरों में बँधा जीवन शायद खुल कर साँस भी नहीं ले पाता
दायरों में बँधा जीवन शायद खुल कर साँस भी नहीं ले पाता
Seema Verma
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
କୁଟୀର ଘର
କୁଟୀର ଘର
Otteri Selvakumar
अब किसी से कोई शिकायत नही रही
अब किसी से कोई शिकायत नही रही
ruby kumari
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
"सोचिए जरा"
Dr. Kishan tandon kranti
तुम बहुत प्यारे हो
तुम बहुत प्यारे हो
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
"सुप्रभात "
Yogendra Chaturwedi
কেণো তুমি অবহেলনা করো
কেণো তুমি অবহেলনা করো
DrLakshman Jha Parimal
मुस्कुराते रहो
मुस्कुराते रहो
Basant Bhagawan Roy
बहुत प्यार करती है वो सबसे
बहुत प्यार करती है वो सबसे
Surinder blackpen
■ आज की बात...
■ आज की बात...
*Author प्रणय प्रभात*
"बचपन"
Tanveer Chouhan
मैं दौड़ता रहा तमाम उम्र
मैं दौड़ता रहा तमाम उम्र
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
समय
समय
Neeraj Agarwal
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
आया बाढ नग पहाड़ पे🌷✍️
आया बाढ नग पहाड़ पे🌷✍️
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
दुनिया दिखावे पर मरती है , हम सादगी पर मरते हैं
कवि दीपक बवेजा
Love
Love
Kanchan Khanna
साजिशें ही साजिशें...
साजिशें ही साजिशें...
डॉ.सीमा अग्रवाल
गुरु मेरा मान अभिमान है
गुरु मेरा मान अभिमान है
Harminder Kaur
दीपावली
दीपावली
Deepali Kalra
बुद्ध जी की करुणा हुई तो
बुद्ध जी की करुणा हुई तो
Buddha Prakash
इन बादलों की राहों में अब न आना कोई
इन बादलों की राहों में अब न आना कोई
VINOD CHAUHAN
मेरा जीने का तरीका
मेरा जीने का तरीका
पूर्वार्थ
जन्म गाथा
जन्म गाथा
विजय कुमार अग्रवाल
Loading...