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11 Jun 2020 · 3 min read

स्वर संधि व्याख्यान

दो स्वर वर्णों की होती जब युगलबंदी,
तब ही दिखती स्वर संधि ।
नवम, नागेन्द्र, बसुधैव, हिमालय,
हैं कितने किसलय स्वर संधि के आलय ।
स्वर संधि के पांच भेद,
सावधान मनसा से इनको देख ।

है प्रथम यहाँ संधि दीर्घ,
हुआ ह्रस्व दीर्घ वर्ण का संसर्ग ।
ह्रस्व या दीर्घ का जब सम जाति से होता मेल,
दीर्घ बना, प्रमाणित किया व्याकरण अपना खेल ।
अ और आ को जोड़कर दिखलाया,
आ ध्वनि हर दिशा से टकराया
शिव का आलय से जोड़
शिवालय कहलाया ।
इ और ई का हुआ व्याकरणिक संधि,
ई आरक्षित की अपनी सीमा बंदी ,
नदी संग ईश जुड़कर, नदीश की, धराताप की मंदी ।
उ और ऊ के युति हुआ ऊ की उत्पत्ति,
देखो भाई भानु युत उदय
प्रकाश डाला है भानूदय जग में रत्ती रत्ती ।

इन संधि के हैं कितने गुण,
शांत चित से सब शिष्य सुन ।
अ,आ और इ, ई का संयोग,
हुआ फिर ए वर्ण का उपयोग,
गण से जुड़गए ईश जब आकर,
गणेश जैसा है कौन बुद्धि में आगर,
अ,आ और उ ,ऊ का देखो संगम,
ओ वर्ण सा निकला, जग में गंगम,
जुड़े दोनों पद सुर्य और उदय,
तम नाशक क्रांति है सूर्योदय ।
अ ,आ और ऋ की है एक अलग पहचान,
इनके युग्मक से है अनेक शब्द बखान,
देव और ऋषि जुटचले आगे आगे,
समझो देवर्षि से विपदा भी स्वतः ही भागे ।
लृ को मत समझो बेकार,
अ,आ और लृ का है संस्कृत में साकार,
तव से योग हुआ लृकार,
दोनो मिलकर बन गया शब्द तवल्लकार ।

वृक्ष सम वृद्धि करते मन मतवाला,
इस सागर में मिलेगे कितने सामर्थ्य वाला,
अ,आ के साथ जुड़े ए ,ऐ भाई,
ऐ बन कर ही जग में अपनी ख्यात जमाई,
तथा और एव के योग में क्या है बड़ाई,
तथैव का अर्थ वहीं है ,क्या कुछ समझ में आई ?
अ, आ और ओ ,औ की हुई युति ,
औ वर्ण ने भी ली अपनी सुधि,
वन संग योग हुए जब औषधि
कहे चरक संजीवनी है, सर्वश्रेष्ठ वनौषधि ।

यण् संधि को न समझो कठिन,
चित लगा, देखो तू भी हो प्रवीण ।
इ, ई का जोड़ चले जब परस्वर वर्ण से नाता,
य वर्ण बनकर ले आए छाता,
प्रति और एक को जब जोड़ा जाता,
प्रत्येक मनुज के समझ में यण् संधि आता ।
उ, ऊ स्वजाति से हो विरक्त,
अन्य स्वरवर्ण से कर बैठे मिली भगत,
व धारण कर, सु और आगत,
से पूर्ण हुआ तब स्वागत ।
ऋ को मिला एक उपदेश,
जा पर से मिल बदलो अपना वेश,
पितृ और आदेश के योग से ,
स्वीकार करो पुत्र पित्रादेश ।
यण् संधि के ही हो लृ संतान,
पूर्व वर्ण सा ही है युग्मक विधान,
लर्थम् पद में देखो लृ का योग है अर्थम्,
लृ बेचारा चलता थम थम ।

यण् के जैसे ही संधि अयादि,
कर्मठता से पायी अपनी ख्याति ।
मिले ए, ऐ विजाति स्वर से, ए चिल्लाया अचानक अय,
ज्ञान अर्जन में क्यों बच्चोंहोता है भय ,
ने का अन से जुड़कर बना नयन,
जीवन में सच्चे मित्र का करो चयन ।
ऐ रहता क्यों मुंह लटकाय,
भिन्न स्वर से मिलकर पा ले अपना आय,
नै और अक की संधि से बना शब्द नायक,
पढलिख कर बन जाओ तू भी बच्चे लायक ।
कठिन परिश्रम के बाद ओ औ न छोड़ा अपना दाव,
दोनों भिन्न स्वरों से जुड़कर, एक बनाया अव दूसरा आव,
श्रो संग अण मिलकर किया पितरौ को भ्रमण,
था एक ऐसा भी जग में पुत्र श्रवण,
सुन सुन श्रौ का योग हुआ जब अण से,
श्रावण की बूंद चमक दमक की पावन मन से ।
कुछ शब्दों को तोड़ जोड़ कर देखो,
व्याकरण की सत् व्याख्या सीखो ।
उमा झा
अगर इस व्याख्यान में कोई त्रुटि हो तो अवश्य परिमार्जन करनें की कृपा करें ।

Language: Hindi
17 Likes · 13 Comments · 978 Views
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