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18 Nov 2017 · 1 min read

“स्वप्निल आभा”

???????????

मदयुक्त भ्रमर के गुंजन सी,
करती हो भ्रमण मेरे उर पर।
स्नेह भरी लतिका लगती ,
पड़ जाती दृष्टि जभी तुम पर।।

अवयव की सुंदर कोमलता,
लगती है मुझको शेफाली।
मंगल स्नेह की प्रतिमा में,
निखरी हो ज्यों उषा की लाली।।

नयनों की नीलम घाटी को,
जब कभी देखता प्रणय मेरा।
सब दूर चारुता हो जाती,
रह जाता विस्मय सिर्फ मेरा।।

स्वप्नों के स्वर्णिम अंचल पर,
छा जाती एक लालिमा सी।
लाली बन सरस कपोलों की ,
आनंद शिखर पर चढ़ती सी।।

फूलों की कोमल कलियाँ सी,
बिखरी है तेरे आँचल पर।
मकरंद पिलाती सी मुझको।
देती हो स्वप्न हृदय तल पर।।

कोमल किसलय से सजी हुई,
मुख मंडल की आभा लगती।
चंचल किशोर सुन्दरता की ,
लालिमा युक्त प्रतिमा लगती।।

स्वप्नों के भाव सुरीले तो ,
स्वप्नों में सिर्फ रहा करते।
इस अवनी तल के भी प्राणी,
कल्पना लोक में जा बसते।।

आंसू के भीगे अंचल पर,
कल्पना लोक लाना होगा ।
उस स्मृति रेखा को लेकर,
अब याद उसे करना होगा ।।

???????????

अमित मिश्रा

Language: Hindi
329 Views
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