स्थायी
स्थायी
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नहीं मानता कि
कुछ भी स्थायी नहीं है
दुनिया में
मेरे कुछ अपनों की दुनिया में
देखता आ रहा हूं बरसों से
सब कुछ स्थायी है………………..
मकान में तब्दील होते उनके
घर की रिवायत का सिलसिला
दीवारें, कमरे , दरवाजे ,
खिड़कियां ,फर्श सभी कुछ…….
मेरे प्रति उनका नजरिया
हीनता और तिरस्कार के भाव
उनका अपनी स्थायी सोच का
बनाया दायरा
उस दायरे में उनका संसार……..
बदलते वक़्त के साथ
कुछ भी तो नहीं बदला
उनके दायरे में
सब कुछ स्थायी है……………..
—. सुधीर केवलिया