Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Aug 2020 · 4 min read

स्थानीय व्यवस्था पर

सरकारी तंत्र में किसी समस्या के हल के लिए ऊपर से आए आदेशों में एक जुमला अक्सर दिखाई देता है कि आप अपनी उक्त समस्या का हल स्थानीय व्यवस्था पर सुनिश्चित करें ।इसका अर्थ मैं यह समझ सका कि जो भी संसाधन आप के आस पास उपलब्ध हों उन्हीं का उपयोग करते हुए समस्या का स्वयं निराकरण करें और जहां से आप ने मदद की आशा की है वहां से कुछ प्रत्याशा ना रखें । वैसे भी प्रत्याशा अधिकतर मन में नकारात्मकता की कारक है ।
अब किसी भी समस्या से संघर्ष करने पर उसके तीन ही हल निकल सकते हैं
पहला या तो आप उस समस्या से विजय पा लेते हैं उसे हरा देते हैं , दूसरा फिर उस समस्या से हार जाते हैं और एक तीसरा परिणाम भी होता है कि वह समस्या भी बनी रहती है और आप भी बने रहते हैं किंतु वह समस्या अब आपको समस्या नहीं लगती और आप भी बने रहते हैं और समस्या आपके साथ सहअस्तित्व स्थापित कर लेती है ।
स्थानीय व्यवस्था पर किसी समस्या से संघर्ष करने के मेरे परिणाम काफी उत्साह वर्धक रहे हैं । निम्न अवसरों को मैं उदाहरण स्वरूप देकर अपनी बात स्पष्ट करना चाहूंगा
=======
एक बार एक सत्ता विहीन दल के दबंग नेता अस्पताल में आकर अस्पताल के वार्ड बॉयज नर्सिंग स्टाफ की छोड़ो चिकित्सकों तक से भी दुर्व्यवहार कर रहे थे । एक-दो दिन से सब लोग उन्हें झेल रहे थे ।एक दिन अचानक अस्पताल के कर्मचारियों ने उन्हें घेर लिया तथा स्थानीय व्यवस्था ने उनके दुर्व्यवहार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया , फल स्वरूप उनकी उसी वार्ड में धुनाई हो गई जहां उनके इलाके का रोगी भर्ती था । उस दिन मुझे पता चला कि अस्पताल में जिस डंडे वाली झाड़ू से खड़े खड़े झाड़ू लगाई जाती है उसके डंडे में कितनी ताकत होती है ।
=======
इसी प्रकार एक सत्तारूढ़ दल के दबंग नेता आए दिन अस्पताल में घुसकर किसी भी वार्ड के अंदर जाकर वहां के दरवाजे तोड़ देते थे , दवाइयां आदि फेंक दिया करते थे , किसी भी अधिकारी के पास जाकर अपनी अकड़ दिखाते थे और उनकी इस दबंगई को अस्पताल की स्थानीय व्यवस्था ने स्वीकृति दे कर हार मान ली थी क्योंकि आखिरकार सरकार भी तो उन्हीं की थी। इसी प्रकार सत्तारूढ़ दल के माननीय यह भूल कर कि यह शासन उन्ही की देन है , प्रायः अपने विभागों के औचक निरीक्षण के दौरान अधिकारियों , कर्मचारियों को फटकारते ( दुत्कारते ) हुए हड़कंप मचा देते हैं और आधीनस्थ भी उन परिस्थितियों से सहअस्तित्व स्थापित कर लेते हैं ।
========
तीसरे उदाहरण में मैं एक बार एक हृदयाघात से पीड़ित एक रोगी को देखने आकस्मिक चिकित्सा वार्ड में जब पहुंचा तो मैंने देखा की एक सत्ता विहीन दल के नेताजी अपने कुछ साथियों के साथ कुछ केले और दूध लेकर दुर्घटना में घायल भर्ती मरीजों के बीच वितरित कर रहे थे । मुझे वार्ड में देखकर वे मुझसे उलझने लगे और यह कह कर कि
यहां बड़ी दुर्र्व्यवस्था व्यवस्था है , किसी मरीज की पट्टी ठीक से नहीं बंधी है , कहीं खून लगा है कहीं चोट पर दवा नहीं लगी है आदि का उलाहना देने लगे ।
मैंने धीरे से परिस्थिति को असहज होते देख कर उसे स्थानीय व्यवस्था के हाल पर छोड़ने के उद्देश्य से उस हृदय आघात से पीड़ित रोगी एवम उसके रिश्तेदारों को सुनाते हुए और नेताजी को संबोधित करते हुए कहा
‘अगर आप मुझे आज्ञा दें तो मैं इस सीने में दर्द के रोगी को देख लूं ‘
इतना कहकर मैं अपने रोगी की ओर मुड़ गया ।थोड़ी देर बाद मैंने पाया उस हृदय रोगी के रिश्तेदारों ने मिलकर नेताजी एवं उनके चेलों को वार्ड के दूसरे सिरे तक खदेड़ दिया था और वे लोग वहीं एक कोने में शांतिपूर्वक अपना केले और दूध बांटने वाला फोटो अपने बैनर के साथ खिंचवा रहे थे । मैं भी अपना कार्य कर रहा था वह भी अपना कार्य कर रहे थे इस सहअस्तित्व में अब उन लोगों की उपस्थिति मुझे मेरे ख्याल में मेरे कार्य में कोई व्यवधान नहीं डाल रही थी ।
रोमन काल से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तक जब कहीं कोई किसी देश या राज्य की सेना किसी परस्पर युध्द में पराजित हो जाती थी तो वहां का राजा या सेनापति अपने सैनिकों को स्थानीय व्यवस्था पर छोड़ते हुए यही आदेश देता था कि खुद अपने आप की सुरक्षा करो या जो करना है सो करो , लूट खसोट करो , खाओ पियो और खुद को ज़िंदा रक्खो । अब तक हमने तुम्हारी देखभाल की ‘ now every bastered for himself .’
ये किन्हीं हारी हुई परिस्थितियों से उत्पन्न जुमले हुआ करते थे जहां पर सेनापति अपनी पराजय मान कर परिस्थितियों पर से अपना नियंत्रण खो बैठता था । वर्तमान में कोरोना काल में परिस्थितियां कुछ ऐसी ही पैदा हो गईं हैं , जहां वैश्विक महामारी की इस आपदा के संक्रमण की पराकाष्ठा एवम विनाश लीला के इस मोड़ पर अब इस विकराल समस्या का हल स्थानीय व्यवस्था पर छोड़ दिया गया है । राज्यों , शहरों एवं स्थानीय निकायों को खुद निर्णय लेकर इससे निपटने का मार्ग तय करने के लिए कहा गया है । हर किसी को अब निजी स्तर पर खुद अपने भरोसे ही कोरोना से संघर्ष करना होगा इस संघर्ष में अब सदैव की भांति प्रकृति की ही जीत सर्वोपरि रहेगी । अधिकतर लोग इस कोरोना को हरा देंगे कुछ इससे हार जाएंगे और शेष लोगों के लिए यह सहअस्तित्व की भांति बना भी रहेगा और उन्हें परेशान भी नहीं करे गा ।
अब यदि इस आपदा प्रबंधन में यदि कोई असफ़लता होती है तो इसका सम्पूर्ण श्रेय उस पीड़ित को निजी तौर पर तथा चिकित्सकों एवम चिकित्सालयों को ही दिया जाए गा , क्योंकि अधिकतर परिस्थितियां अब व्यक्तिगत एवम स्थानीय व्यवस्था पर निर्भर हैं ।

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 2 Comments · 352 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कितना खाली खालीपन है !
कितना खाली खालीपन है !
Saraswati Bajpai
* शक्ति स्वरूपा *
* शक्ति स्वरूपा *
surenderpal vaidya
बाबा साहब अंबेडकर का अधूरा न्याय
बाबा साहब अंबेडकर का अधूरा न्याय
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
क्रोधावेग और प्रेमातिरेक पर सुभाषित / MUSAFIR BAITHA
क्रोधावेग और प्रेमातिरेक पर सुभाषित / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
*बड़ा आदमी बनना है तो, कर प्यारे घोटाला (हिंदी गजल/ गीतिका)*
*बड़ा आदमी बनना है तो, कर प्यारे घोटाला (हिंदी गजल/ गीतिका)*
Ravi Prakash
जी करता है , बाबा बन जाऊं - व्यंग्य
जी करता है , बाबा बन जाऊं - व्यंग्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जज़्बात
जज़्बात
Neeraj Agarwal
"दोस्ती"
Dr. Kishan tandon kranti
*** लम्हा.....!!! ***
*** लम्हा.....!!! ***
VEDANTA PATEL
गुजरा वक्त।
गुजरा वक्त।
Taj Mohammad
सारे  ज़माने  बीत  गये
सारे ज़माने बीत गये
shabina. Naaz
डरने कि क्या बात
डरने कि क्या बात
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हर बार सफलता नहीं मिलती, कभी हार भी होती है
हर बार सफलता नहीं मिलती, कभी हार भी होती है
पूर्वार्थ
■ मेरा जीवन, मेरा उसूल। 😊
■ मेरा जीवन, मेरा उसूल। 😊
*Author प्रणय प्रभात*
मानवता
मानवता
Rahul Singh
स्वर्गस्थ रूह सपनें में कहती
स्वर्गस्थ रूह सपनें में कहती
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गीत
गीत
Shiva Awasthi
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
ruby kumari
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
कवि दीपक बवेजा
ऐ मेरे हुस्न के सरकार जुदा मत होना
ऐ मेरे हुस्न के सरकार जुदा मत होना
प्रीतम श्रावस्तवी
~~तीन~~
~~तीन~~
Dr. Vaishali Verma
(10) मैं महासागर हूँ !
(10) मैं महासागर हूँ !
Kishore Nigam
अमर्यादा
अमर्यादा
साहिल
💐प्रेम कौतुक-261💐
💐प्रेम कौतुक-261💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
“ अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को सम्मान दें
“ अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को सम्मान दें"
DrLakshman Jha Parimal
भले दिनों की बात
भले दिनों की बात
Sahil Ahmad
बड़ी ठोकरो के बाद संभले हैं साहिब
बड़ी ठोकरो के बाद संभले हैं साहिब
Jay Dewangan
गाडगे पुण्यतिथि
गाडगे पुण्यतिथि
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
SHELTER OF LIFE
SHELTER OF LIFE
Awadhesh Kumar Singh
Loading...