Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2019 · 2 min read

स्त्री सरिता सादृश्या

“स्त्री सरिता सादृश्या”
‘ गो विद द फ्लो’ अर्थात जैसा वक़्त आये, उसके संग -संग बहो..
क्या सचमुच हम ऐसा कर पाते हैं?या इस उक्ति को लिंग भेद का समर्थन प्राप्त है।बड़े बूढों को कहते सुना था कि “लड़कियां देवी लक्ष्मी स्वरूपा होती हैं।” दादी मां कहती थीं-“लड़की मायके और ससुराल में जल की तरह होती है जिसके बिना घर गृहस्थी निष्प्राण होते हैं,जल का अपना रंग नहीं होता,जैसा रूप-रंग दे दो वैसा ही हो जाता है।” लड़कियों को पराया धन भी माना जाता है।अब चाहे लक्ष्मी जी के नाम से संबोधित करो चाहे जल और धन की उपमा से शोभित करो। तीनों की ही प्रकृति चंचल मानी गई है। तीनों ही स्थिर नहीं रह सकते, चलायमान हैं। फिर आज भी स्त्री जीवन स्थिर क्यों रह जाता है।
स्त्री को बार-बार बाँधों में बाँध देने की, उसके आजू-बाजू बाड़( हेज) लगा देने की या उसके पैरों में जंजीरें बाँध देने की घटनायें अलग अलग तरह से आज भी सर उठाती रहती हैं! काम काजी स्त्रियों को उनके दफ्तर या काम के स्थान तथा घर पर, घरेलू स्त्रियों को घर-बाहर-रिश्तेदारों में , कभी गाँव की पंचायत के सामने तो कभी अपने ही पति व बेटों के समक्ष! लेकिन स्त्री अब कहीं नहीं रुकेगी।उसे रुकना ही नहीं चाहिए। स्त्री स्वयं नदी है।स्वतंत्र है। फिर उसके जीवन का आवेग -प्रवाह क्यों थमे! सदियों से कुछ रिश्ते बेड़ियां बनकर उसकी राह रोक लेते हैं।लेकिन वो इतने भी बड़े नहीं होते की उसे नदी से झील बना दें!
आज कक्षा में ‘मैं झील हूँ, उकता गयी हूँ”!’ कविता अपठित काव्यांश के रूप में पढ़ाते हुए ऐसा प्रतीत हुआ मानों “मैं झील हूँ, उकता गयी हूँ,अब चाहती हूँ बहना, बौरा गयी हूँ !”

पंक्तियां हम स्त्रियों के जीवन को चित्रित कर रहीं हों। सच में नदी के बहते जल जैसा जीवन ही तो होता है हमारा।कभी चट्टानों से नीचे गिरता तो कभी शांत निर्मल , पठार पर अपना फैलाव बनाता, पत्थरों पर सिर पटककर ! कभी – कभी तो उसे विषम परिस्थितियों में भी खुद को संभालना पड़ता है क्योंकि,किनारे तो बस…किनारे ही होते हैं, जीवन भी तो ऐसा ही है।वे क्षण जो अप्रत्याशित रूप से आपको कहीं नीचे लुढका देते हैं या आपको दो कदम पीछे लेने को मजबूर कर देते हैं।ये वो ही क्षण होते हैं जिनमें अक्सर आप आत्मिक- मानसिक रूप से बल पाते हैं।नए निश्चय और नए आयाम ढूँढते हैं। फिर इन नए संकल्पों से अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ते हैं। इसे ही कहते हैं, नदी सादृश्य होना।समय के संग बहते जाना।पर पता नहीं सरिता सादृश्या होते हुए भी क्यों हम स्त्रियां कभी पति, बच्चों व परिवार की खुशहाली के लिए अपना प्रवाह छोड़ कर भावनाओं के बहाव में बहकर मात्र झील बनकर रह जाती है।
नीलम शर्मा ✍️

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 269 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अहसास
अहसास
Dr Parveen Thakur
मैं चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ
ruby kumari
सूरज आएगा Suraj Aayega
सूरज आएगा Suraj Aayega
Mohan Pandey
निर्माण विध्वंस तुम्हारे हाथ
निर्माण विध्वंस तुम्हारे हाथ
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
अपनेपन का मुखौटा
अपनेपन का मुखौटा
Manisha Manjari
जीवन के हर युद्ध को,
जीवन के हर युद्ध को,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मजदूर
मजदूर
Harish Chandra Pande
2648.पूर्णिका
2648.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*मुख्य अतिथि (हास्य व्यंग्य)*
*मुख्य अतिथि (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
** बहुत दूर **
** बहुत दूर **
surenderpal vaidya
मैं तुझसे बेज़ार बहुत
मैं तुझसे बेज़ार बहुत
Shweta Soni
संकल्प का अभाव
संकल्प का अभाव
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
My life's situation
My life's situation
Sukoon
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
Kshma Urmila
सफल
सफल
Paras Nath Jha
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
प्रेमदास वसु सुरेखा
प्रभु पावन कर दो मन मेरा , प्रभु पावन तन मेरा
प्रभु पावन कर दो मन मेरा , प्रभु पावन तन मेरा
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बिषय सदाचार
बिषय सदाचार
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
🙏🙏सुप्रभात जय माता दी 🙏🙏
🙏🙏सुप्रभात जय माता दी 🙏🙏
Er.Navaneet R Shandily
चंद्रयान-थ्री
चंद्रयान-थ्री
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
नेता जब से बोलने लगे सच
नेता जब से बोलने लगे सच
Dhirendra Singh
माँ दे - दे वरदान ।
माँ दे - दे वरदान ।
Anil Mishra Prahari
सलामी दें तिरंगे को हमें ये जान से प्यारा
सलामी दें तिरंगे को हमें ये जान से प्यारा
आर.एस. 'प्रीतम'
"सवाल"
Dr. Kishan tandon kranti
स्त्री एक देवी है, शक्ति का प्रतीक,
स्त्री एक देवी है, शक्ति का प्रतीक,
कार्तिक नितिन शर्मा
#शेर-
#शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
12. घर का दरवाज़ा
12. घर का दरवाज़ा
Rajeev Dutta
छलते हैं क्यों आजकल,
छलते हैं क्यों आजकल,
sushil sarna
प्यार क्या है
प्यार क्या है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
सरेआम जब कभी मसअलों की बात आई
सरेआम जब कभी मसअलों की बात आई
Maroof aalam
Loading...