स्त्री फिर से
जीवन में स्त्री ही फिर से है।
आप कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतकर आयें
आप कार्यालयों में आजीविका खो कर आयें
आप अपना अस्तित्व बचाते आहत होकर आयें
आप खुद से पराजित होकर आयें
आप अपना सर्वस्व खोकर आयें
स्त्री ही रोती है आपके साथ
स्त्री ही प्रसन्न होती है आपके साथ
स्त्री ही आपके अहम् को सहलाती है
स्त्री ही पुन: प्रस्तुत करती है आपको
कुरुक्षेत्र के लिए,
जीविका के लिए
सर्वस्व पाने के लिए
खुद पर विजय पाने के लिए
वह दोस्त होती है
आपको देखकर व्यथित वह
वह सन्न होती है-
वह जानती है आपको आप से ज्यादा
इसलिए खड़ा कर देती है फिर से आपको
जब आप गिर चुके होते हैं
उसे वैसा बनने में आप उसकी मदद करें
स्त्री फिर से है।
स्त्री ही फिर से है।
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