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7 Nov 2017 · 1 min read

** स्तुति **

अति रमणीक है हृदय का उपवन
अधिष्ठाता जिसके प्रभु स्वयं आप।
अन्तर्मन की वाणी तुम सुनते
नहीं सुनते तुम मिथ्या आलाप।
यदि हूँ मैं पथभ्रमित तो दाता
दो परमेश्वर तुम मुझे संताप।
या सत्मार्ग पर ला दो मेरे भगवन
दे दो मुझे अपने आशीषों की थाप।
तुम ही, तुम ही, तुम ही हो ईश्वर
मेरे करतार, मेरे मां-बाप।

–रंजना माथुर दिनांक 07/11/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना ©

Language: Hindi
433 Views
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