स्कुली बच्चे
मूसलाधार बर्षा से लेकर,
कडकडाती ठन्ड मे होकर
चिलचिलाती धूप मे चलकर,
उन बच्चों,कि स्थिथि पर गौर करें,
जिन्हे नसीब नही है,
चलने को प्रयाप्त पगडण्डी भी।
और,दुसरी ओरयह भी हैं
जिन्हे स्कूल तक पहुँचाने को,
एक ब्यवस्थित ब्यवस्था है।
ऐसे में,अक्सर कभी,पगडण्डी वाला छात्र,
छात्र जीवन के संघर्ष से अजीज आकर,
कब फेंक देता है,अपना बस्ता,
और,चुन लेता है,मेहनत कश जीवन,
एवम् जीने का एक रास्ता।
काश,उसने थोडा धैर्य दिखाया होता,
तो शायद,
उसे भी भाग्य से कुछ पाने का अवसर मिल जाता
क्योंकि,जिन्होने तब सह लिया वह यातना काल,
वह आज कुछ,खुशहाल हैं।
और उस ओर दुसरी तरफ वह बच्चे,
जिन्हे,मौसम कि जानकारी,
अनुभूति से नहीं,बल्कि परिवर्तन से होती हैं,
वह तरक्की पर तरक्की,किये जा रहे हैं,
तथा जुटा रहे हैं अम्बार,भौतिक सुख साधनो का।
और।शासन सत्ता सन्तुष्ट है,
कि कहीं विपल्लव नही,ऐसी ब्यवस्था मे भी ।