सौ दिन का काम,मनरेगा है नाम
सौ दिन का है काम,मनरेगा है नाम।
खर्चे कि मजबूरी,एक सौ चौहत्तर कि मजदूरी।
खर्चे का है यह ब्यौरा,जो मिलता वह है थोडा।
टमाटर, सब्जी,पर खर्चा पच्चास,
दुध दही पर लगता साठ,
दाल , तेल, मिर्च,मसाले
आटा,चावल पर साठ डाले।
दिन एक और खर्चा,एक सौ सत्तर,
घर चलाना हो गया,बदत्तर।
कैसे चले घर का पहिया,
जेब में ना हो जब रुप्पया,,।
तब घर कि दुलारी काम को ,जाती,
जूठे बर्तन, झाडू पोंचा,
या सिर पर टोकरी,और गैंन्ती बेलचा,
जो भी मिलता,वह जुट जाती,
घर का,चुल्हा,तब चलाती,
मनरेगा,में दिन हैं सौ,
दो सौ पैंसठ का फिर क्या हो,
दुख,बिमारी,और लाचारी,
बच्चों पर पडती भारी,
कैसे पढें,कैसे बढें,
किसकी है यह जिम्मेदारी।
तीन सौ पैंसठ दिन साल के,
महिना एक विश्राम काट के,
दो सौ पैंतीस दिन और काम मिले
एक माह का ईनाम :-(बोनस): मिले,
मनरेगा में काम चाहिए,
चार सौ दिनो का दाम चाहिए ,
हक से मागते हैं,यह हक है हमारा,
मनरेगा से हो काम सारा।