सोच
सोच बड़ी और गुफ़ा-सी गहरी है मेरी
यूँ कहिये ज्यादा सोचने से सुनहरी है मेरी
ऐब की कमी नहीं फिर भी बढ़ रहे हैं
ये बेबाक ख़ामियाँ ही प्रहरी है मेरी
हँसी आती है कभी इस कदर ख़ुद पर
कि बेकाम की बोझिल रिश्तेदारी है मेरी
ख़ुद्दार हूँ इसलिये ख़ुद्दारी बहुत है मुझमें
तभी जिव्हा-ज़हर सी जवाबदारी है मेरी
मत रोक ख़ामोश ‘पूनम’ को क़ि वक़्त बाक़ी है
ये वक़्त की खराबी बहुत बड़ी लाचारी है मेरी
— पूनम पांचाल —