सोच के बादल जहन में छा गये
2122- 2122- 212
आदमीयत का सबक सिखला गये
आला दर्जा इस —-जहां में पा गये
हो गये ——इंसानियत पे वो फ़ना
इक नये रस्ते पे . जब वो आ गये
छोड़ कर नफ़रत की दुनिया एक दिन
महलों से एक —-रात बाहर आ गये
खूबसूरत बीवी ——बच्चे सो रहे
पर जहां के दर्द उनको भा गये
होता है क्यूं आदमी को दर्द ये
सोच के बादल — जेहन में छा गये
मरता है क्यूं आदमी जाता है कहां
ग़म यही उनके जिग़र में आ गये
एशो-इशरत के सभी सामां तजे
प्यार से “प्रीतम” वो दिल बहला गये