सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
सोचता हूँ अब क्या लिखूँ,
आरक्षण या भ्रष्टाचार लिखूँ,
घूसखोरी के बढ़ते आयाम लिखूँ,
या फिर बिगड़ते देश के हालात लिखूँ।
यहाँ हर दिन हो रहा महाभारत,
क्या कौरव सेना बलवान लिखूँ,
सोचता हूँ अब क्या लिखूँ।
धर्म लिखूँ या जात लिखूँ,
वर्ग-भेद का स्वराज लिखूँ,
आरक्षण में पिसते मेधावी का दुर्भाग्य लिखूँ,
हिन्दू लिखूँ या मुसलमान लिखूँ,
जात धर्म के नाम पे हो रहे यहाँ इंसानियत का क़त्ल-ए-आम लिखूँ,
सोचता हूँ ‘सचिन’ अब क्या लिखूँ।
स्वतंत्रता लिखूँ या गणतंत्र लिखूँ,
अपने ही निज देश मे बिन अधिकारों का प्रजातंत्र लिखूँ,
रामायण का राम लिखूँ या गीता का श्याम लिखूँ,
अनुज के अधिकारों को छीने ऐसे कलयुगी श्री राम लिखूँ,
सोचता हूँ ‘सचिन’ अब क्या लिखूँ।।