क्या लिखूँ….???
मैं सोच रहा हूँ
क्या लिखूँ
इन कोरे कागजों को
नीली श्याही से
कैसे ख़राब करूँ…
वर्तमान लिखूँ
या भविष्य का विचार
कब्रों को खगांलु या
वन रहे इतिहास को
न्याय पर लिखूँ या
तरसते न्याय पर ।
सोचता हूँ खो जाऊं
रेशमी बालों में
या महकते
चाँदी से बदन में
दूर बेचैनी छोड़ के
रात का
मोल-भाव तय करके ।
हर दुःख को
हर टीस को दवा लूँ
मिटा दूँ
अलंकारों में
भक्ति भावों में
यही लिख दूँ और
खुश कर दूँ परवानों को
चेहरे के दीवानों को ।
जबर्दस्ती करता
लोकतंत्र लिखूँ या
जबर्दस्ती सहता जनतंत्र
जीत लिखूँ या हार
लोकतंत्र की
गुमराह करते मन्त्र की ।
भैया दूज लिखूँ या
उड़ती-बिखरती आबरू
दीपोत्सब लिखूं या
सीमा पर भुजते चिराग या
घर में लटकती झूलती
मजबूरियां।
धर्म-शास्त्र पर लिखूँ या
धार्मिक अत्याचार
अध्यात्म लिखूं या
बढ़ते कर्मकांड
धार्मिक सामंजस्य लिखूं या
समाज का बिखराव
इंसानियत पर लिखूँ या
जातिवाद पर ।
समझ नही आता
क्या लिखूँ…
ख़ुशी परिवार लिखूँ
या बृद्ध आश्रम की
भीड़
पति-पत्नी प्रेम
या फिर कोर्ट की दलीलें
और
भटकती संताने ।
बसन्त पर लिखूँ
या शरद पर
धुंए पर लिखूँ या
हांफते इंसान पर
बारिश पर लिखूं या
अम्ल के बादलों पर।
समझ नही आता
क्या लिखूं…..
हंसते उछलते
जोशीले युवाओं पर लिखूँ
या रस्सियों की
गुस्ताख़ीयों पर
रोजगार पर लिखूँ
या धूल खाती डिग्रीयों पर ।
प्रेम पर लिखूँ या
बेशब्र जवानी पर
प्रेमालिंगन पर या
असंतुष्ट जिस्मो पर
गहरे रंगे होठों पर
या
वेरंगे प्रेम पर ।
समझ नही आता
क्या लिखूं…..
इतिहास का गौरबगान करूँ
या वर्तमान की झूठ का
भविष्य के लिए सोचूँ या
वर्तमान की डगमाती नींब का ।
आर्थिक विकास पर लिखूं
या आर्थिक दिवालों पर
किसान पर कहूँ
या कर्ज पर
निर्यात पर कहूँ
या आयात पर….
समझ नही आता
क्या लिखूं….
कोरा कागज
कैसे ख़राब करूँ….