सैनिक की नार
क्या व्यथा सुनाऊँ मैं सैनिक की नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
राह ताकती रहती अखियाँ पहरेदार की
घर आगमन पर बातें खूब होगीं प्यार की
तरसे अखियाँ प्यासी सोहणी मुटियार की
काँटों भरी हैं जिन्दगी कुमलाहीं नार की
लालन पोषण करती हैं सम्पूर्ण परिवार का
रखती है ध्यान स्वर्ग तुल्य घर संसार का
बली चढती हैं सदा खुशियाँ बेचारी नार की
काँटों भरी हैं जिन्दगी कुमलाहीं नार की
जोबन भरा यौवन प्यासा रहे पपीहे सा
ढूँढती है सहारा निज हरमन मसीहे का
धड़कने बढती रहती हैं सिमटी नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
व्यथित विचलित असंयमित रहता है मन
बिन पानी जैसे तड़फे कूँज वैसे तडफे मन
बिखरी हैं भावनाएं बिलखती नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
रहे सदा हौंसला बढाती वीर जवान का
सुख दुख में जीती गौरव बढाए जवान का
रंज तंज भरी हैं जिन्दगी बौखलाई नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
माँग का सिन्दूर जंग में शहीद हो जाए
सदा सुहागन पल मे बड़भागन हो जाए
टूटती हैं चुड़ियां वीर की विरांगना नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
क्या व्यथा सचनाऊँ मै सैनिक की नार की
काँटों भरी है जिन्दगी कुमलाहीं नार की
सुखविंद्र सिंह मनसीरत